अब्दुल्ला की नई शुरुआत
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"ए अखल के ताजिर", उसकी आवाज़ कांप रही थी। मैंने अपनी सारी जवानी दौलत जमा करने में गंवा
दी। मगर आज जब मैंने देखा कि मेरी कोई इज्जत नहीं रही, कोई मेरा साथ देने वाला नहीं,
तो मुझे एहसास हुआ कि मैंने कितनी बड़ी गलती की है। बरह क्रम मुझे ऐसी अक्ल इनायत फरमा जो मुझे
मेरी खोई हुई इज्जत वापस दिला सके।" हसन ने उसे ठंडी आंखों से देखा। वह अब्दुल्ला की आंखों
में मौजूद निदामत और तौबा को पढ़ सकता था। अपनी मारूफ मुस्कुराहट के साथ उसने कहा, "अब्दुल्ला हर मसले
का हल मुमकिन है। मैं तुम्हें वो अकल दे सकता हूं जो तुम्हारी जिंदगी बदल सकती है। मेरी फीस पाँच
हज़ार दीनार होगी। अगर मेरी अक्ल काम ना आई तो मैं तुम्हें दुगनी रकम दूंगा, वापस कर दूंगा।"
अब्दुल्ला ने अपने पास बची कुछी जमा पूंजी में से पाँच हज़ार दीनार इकट्ठे किए और हाथों में
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