फकीर का इंसाफ और काजी की दानाई
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जैसे ही फकीर काजी अब्दुल हमीद के सामने खड़ा हुआ, अदालत में सुकून छा गया। काजी ने
अपने मामूल के शाइस्ता अंदाज में उसकी तरफ देखा और मुकदमे की तफसील जानने के लिए अपना कलम और कागज
तैयार किया। काजी अब्दुल हमीद के जहन में फौरन यह सवाल आया कि किस तरह यह छोटा सा इंसान,
जो भूख और ग़रबत में मुक्तला है, लालची और ज़ालिम मालिक के जबर के सामने इंसाफ की दरख्वास्त
लेकर आया है। फकीर ने अपना मौकिफ बयान किया, "मेरे पास सिर्फ एक रोटी के पैसे
थे। मैंने उसके इलावा कुछ नहीं खरीदा। बड़े पकवानखाना की खुशबू ने मुझे अपनी रोटी के साथ महजूस
किया और मैंने महज तसव्वुर में पकवान का मजा लिया। मैंने कुछ नहीं खाया और कुछ नहीं छीना।"
फकीर की आंखों में खौफ और शर्मिंदगी के आसार साफ थे, मगर उसकी बात में सच्चाई की चमक भी
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