अली बाबा और चालीस डाकू
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सल्तनत-ए-फारस की सरजमीन अपनी सुनहरी रेत के टीलों, सरसब्ज नदियों और छोटी-छोटी बस्तियों
के लिए मशहूर थी। यहां के लोग मेहनत, ईमानदारी और नेक अखलाक को कदर की निगाह से देखते थे।
इसी बस्ती में अली बाबा का खानदान रहता था। अली बाबा के वालिद एक नेक दिल और शरीफ इंसान थे,
जो कालीनों के कारोबार में महारत रखते थे और बस्ती के लोग उन्हें ताजिर-ए-कालीन के तौर पर जानते
और इज्जत की निगाह से देखते थे। वालिद की दानिशमंदी और ईमानदारी की वजह से सब लोग उनसे मशवरा
लेते और उनकी नसीहत को अहमियत देते। उनके दो बेटे थे। बड़ा बेटा कासिम, जो दौलत और दुनियादारी
में दिलचस्पी रखता था और छोटा बेटा अली बाबा, जो सादा दिल, मेहनती और कानात
पसंद था। अली बाबा के दिल में सुकून और हलाल रिस्क की कदर हमेशा मौजूद थी। वक्त गुजरा और
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