फकीर की चालाकी और जादूगर का गर्व
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झाड़ी किसी ना किसी राज की गवाह लग रही थी। फ़कीर ने इस बार अपना भेस बदल लिया था और शीशा
साज कारीगर के रूप में झोंपड़ी के करीब पहुंचा। इसके साथ एक बड़ा आईना, दो छोटे शीशे और
एक छोटा सा डब्बा था, जिसमें वो बाद में तलवार रखेगा। झोपड़ी के करीब पहुंचते
ही फकीर ने अपने हाथों में आईने को थाम लिया और आहिस्ता कदमों से दरवाजे की जानिब बढ़ा। अंदर
जादूगर खजाने की रोशनी में महज था और उसके चेहरे पर गुरूर की झलक साफ नजर आ रही थी। फकीर
ने नरमी और आजीब के साथ कहा साहिब, मैं शीशे और आईने का माहिर कारीगर हूं। मैंने सुना
है कि आपकी तलवार बोलती है। मैं चाहता हूं कि इसकी ताकत को समझने के लिए इस पर जादुई नक्शा
तैयार करूं। जादूगर ने एक तवील निगाह फकीर पर डाली और गुरूर से मुस्कुरा कर कहा देखा जाए
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