चोर बादशाह सालार का दौर
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सालार के अंदर की बेखौफी और माहिर चोरी की महारत ने उसे, उस मकाम तक पहुंचाया
था। तख्त पर बैठते ही उसने अपने अंदर के घुरूर और चालाकी की रोशनी को महसूस किया। वजीर,
मशीर और सिपाही सब हैरत न पड़गे। जब सालार ने तख्त पर बैठते हुए पहली बार सल्तनत के लिए हुक्म
दिया। मगर उसकी आवाज में वही मक्कारी और हुनर मौजूद था जो एक चोर के दिल में रहता था है।
यानी सल्तनत के खजाने पर अब भी उसकी चोरी की महारत छाई हुई थी। उस दिन के बाद सल्तनत के लोग हैरान
रह गए। वो जो कल रात चोर था, आज दरबार में बादशाह के तौर पर बैठा था। सालार ने सोचा अब
सब कुछ मेरा है, लेकिन मैंने अभी तक अपनी महारत को बरकरार रखा है। तख्त पर बैठकर उसने हिकमत,
चालाकी और चोरी के फन को मिलाकर सल्तनत की नई राहें तय करने की ठानी। और वह लमहा, जिसमें सफेद बाज
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